Tuesday 10 July 2012

तारे ..... 23

बचपन से सुना है ,
तुममे अजब सी शक्ति है !
तुम अपनी दिशा बदल कर ,
किस्मत सबकी बदल देते हो !
                          ऐ तारे मेरी भी  सुन लो !
                          तुम अपनी दिशा बदल कर ,
                          किस्मत को मेरी बदल दो!
                          जितने  मोती बीखर गये हैं ,
                           उनको  माला  मे फिर से पिरो दो !
                           असंयामित  जीवन को मेरे ,
                           संयमित कर दो
गिन गिन  कर तुम को ,
कितनी रातें कट गई ,
पलकें फिर भी नींद के ,
आहट को तरस गयी !
                          ऐ तारे तुम सून  मेरी ,
                         सुना है  टूट  कर भी तुम ,
                         मनन्त कों पुरा करते हो ,
                         एक बार मेरी भी सुन लो !
                        खुशियों से जीवन को भर दो !
                        तुम अपनी दिशा बदल कर ,
                       किस्मत को मेरी बदल दो ....

Thursday 14 June 2012

अन्नपूर्णा ....22


भैया के कलाई क़ी राखी बनूगी,
और रसोई कि अन्नपूर्णा ,
माँ मुझको जन्म लेने दो ना ,
बन क़र दिखा दूंगी तुम्हे ,
 एक दिन मैं "कल्पना  " !
                            भैया के भी चार हाथ नही हैं ,
                            और ना ही चार पैर ,
                            जो वो कर सकते है,
                            मैं भी करुँगी !
                            जीवन के पथ पर उषा सी तेज ,
                            माँ मुझको जन्म लेने दो ना ,
                            "किरण" सी  मैं भी चमकुंगी  !
संस्कार को धरोहर समझूँगी,
मुझको जन्म दे कर बन जावो,
तुम  मेरी ईस्वर!
"प्रतिभा "सा सम्मान पाउंगी !
जीवन के सुर को" लता" सी गाउंगी !
खुशियों का साथ बनुगी ,
और गम का बनुगी मैं  सहारा !
                                   मुझको भी तो ईस्वर ने ही रचा है ,
                                   मुझसे ये भेद कैसा ,
                                   माँ मुझको भी जन्म लेने दो ना ,
                                    मैं भी बनुगी  मदर टेरेसा .....



Saturday 9 June 2012

इंतजार..21

अश्कों के दामन में मेरी रातें अब सोती  है ,
तुम आये थे तुम आवोगे ये सोच अब सुबह है ! 
  
मिलता  है  अब हर कोई  एक  नसीहत  क़ी तरह  ,
तेरे  जाने  के बाद ,अब  कहाँ वेसी सूबह, और वेसी शाम होती है !

उसी जगह करते हुए  इंतजार तुमहारा ,
किस सफाई से  तुमने थामा था  हाथ ,ये याद करते हैं !

Sunday 29 April 2012

केनवास ...20


जब भी चित्र बनाया मैने,
      तुमने कल्पना  कहा !
रंग भरा जब भी उसमें
      तुमने सपना कहा!
मैंने कहा " जीबन सुन्दर है " !
      तुमने कहा  "नही ये तो सत्य है!"
जब भी  कविता लिखा ,
      तुमने जूनून कहा
लिखा गजल जब भी मैंने,
      तुमने फिजूल कहा उसे ,
 मैंने कहा "पलाश सुन्दर है!!"
    तुमने कहा नही" ये तो गंधहीन है "
जब भी तर्क दिया मेने
     तुमने कहा" दार्शनिक मत बनो"
पूछा सवाल जब भी तुमसे ,
तुमने कहा" जिद मत करो "
क्या करूं ?  क्या पुछु  ?
तुम्ही इसकी एक किताब दे दो !
हर वक्त खोये से रहते हो,
कभी तो मुस्कुराकर ,
हाथो में मेरा हाथ ले लो!
उतर  में...
कभी गुसा कर ,कभी मुस्कुराकर,
मुझको टालते गये !       
और यूँ रंगता गया,
कभी जिन्दगी और कभी केनवास.......
 
 
 

Tuesday 17 April 2012

ख़ामोशी ....19

"खामोश हो तुम ,
पर  कुछ कहती हो "
              ऐसा कहते हो तुम अकसर  !
"दिन में तारे गिनती रहती  हो , 
खुली आँख से सपने बुनती हो ,
अछर धुंधला सा है, लेकिन ,
एक  खुली किताब सी लगती हो तुम "
               ऐसा  कहते हो तुम अकसर ! 
"कभी बोलती थकती नही,
जैसे  सारे जग का ज्ञान तुम्हे है !
कभी चुप शांत भोली सी,
 जैसे  कोई नादाँ हो तुम "
                ऐसा  कहते हो तुम अकसर !
"ख़ामोशी में  तेरी बातों को ,
सुन लिया हैचुप से मैंने भी  ,
आँखों के तेरे सपनों को ,
बुन लिया है मैंने भी ,
तुम किताब हो तेरी कविता ,
को पढ़ लिया है मैंने  भी ,
तेरा बोलना हो या चुप रहना,
 मुझको सब अच्छा लगता है !
तेरी बातों में मुझको,
 बचपन का सब सच लगता है! "
                   मुझको याद नहीं है लेकिन ,
                   ये सुब मुझसे कभी कहा हो !
                   खामोश हो तुम,
                   पर कुछ कहती हो,
                    ऐसा  कहते हो तुम अकसर .....

Monday 16 April 2012

कोमल कल्पना ...18

मैं आईने मैं देखती हूँ खुद को मगर ,
क्या आइना  भी देखता होगा मुझको...?
          अगर आइना भी मुझे देख  पाता
          तो  हुबहू तस्बीर न मेरी बनता
          कुछ और सजाता अपनी तरफ से
           कुछ  और सवार्ता अपनी तरफ से 
           मेरे हिर्दे से हीनता को हटा कर 
           ऊँचाइयों में मुझको कई पर लगा कर
           दिखता सलोना सपन
           और बताता वो मुझको
           की मेरा भी अस्तिव है बसुन्धरा में,
           इसे वो मेरे पास आके जताता!
 मैं आईने मैं देखती हूँ खुद को मगर.,
क्या आइना  भी देखता होगा मुझको ..?
            अगर आइना भी मुझे देख पाता  
             पल भर के लिये सही पर वो मुझको
             सपनों की रानी किसी का बनता
             कहतें हैं सब सच कहता है आइना 
             मगर वो भी डरता कहते हुए सच मुझसे
             अगर मेरे दुखों को वो पहचानता
 मैं आईने मैं देखती हूँ खुद को मगर 
 क्या आइना  भी देखता होगा मुझको...?

Friday 13 April 2012

आदत मेरी ....17

रातों  का  ख्वाब ,
सुबह  का सूरज बन जावो !
दर्द की दवा,
खुशियों की वजह बन जावो!
 दोड़ते रहें हम,          
समंदर के किनारे नगें  पैर,
सीपियों को चुनते रहें ,
बेवजह झगड़ने की,
तुम वजह बन जावो ,
धडकनों से तेज़,
मन से भी जो हो गहरा,
वो रिश्ता बन जावो ,
सातों जनम तक ना ,
छुट सके मुझसे
तुम वो मेरी आदत बन जावो......
 
  
  


चैन से.....16

ना हँसना,  ना रोना ये चाहता है ,
बहुत थक गया ,
झूठी हंसी हँसते -हँसते,
अब चैन से सोना चाहता है
ना  सर पे छत की  ख़ुशी है!
है ना पेरों  में ,छाले का गम 
ना झूठे सपनो का कोई सच ,
अब ये चाहता है.!.
                            न हँसना ..... 
ना बचपन है की कहानियों    
का सहारा मिल सके !
और नए खिलोनो से 
ये दिल बहल सके !
ना उम्मीदों का हिम है  !
की किसी वादे से पिघल सके 
ना किसी के जाने का गम है !
ना आने का इंतजार किसी का 
देखना तुझे ये बस ,
अब रब चाहता है.. ..

Thursday 12 April 2012

मेहमान ..15

बार- बार दस्तक देता है!
फिर लोट जाता है  !
मोहबत तो वो मेहमान,
बन गया है  जिन्दगी का ,
जब घर पर न हो हम ,
तभी जो घर आता है !
चुभता है अकेलापन हमें!
ओढने के बाद ,
मुस्कराहट का लिबास भी,
 जब भी आइना देखूं तो
आँखे साथ किसी का मांग देता है....
 



Monday 9 April 2012

पल...14

मुड़ कर भी फिर,
चाहे न देखो,
पर ये वादा करके
जाना  होगा !
जो  पल हमने 
साथ बिताये ,
भूल तुम्हे यहीं
तुम्हें जाना होगा !
 माना  की  ये ठीक है !
मुझे  भुलाना अच्छा होगा ,
पर तुम मुझसे,
सच -सच  कहना,
चाँद हसीं पल 
मेरे मुझ से,
छीन जाना,
 क्या ? अच्छा  होगा  ...?



 
 

Monday 19 March 2012

समझ ....13

हर  बार मंदिर के सीढियों तक,
चल के कदम लोट आये हैं !
जब से हम आपसे मिले  हैं ,  
क्या मांगे दुआ में ,
ये अब  तक न समझ पाए हैं !

की सोचते सोचते ,
कब  सोच बन गये हमारी ,                
रब ही बन गए हमारे, 
की जब से आप से मिले हैं ,
रब  का या आपका ,
किसका नाम लें हम पहले  ,
ये अब तक न तय कर  पाए हैं !  

Wednesday 14 March 2012

साथ ...12

धरती के सूखने से,
और हरियाली के छाने तक,
हम  साथ चलेंगे ,
छितिज के मिल जाने तक !

आमवस्या  की रात से ,
पूर्णिमा की रात तक ,
बादलों के बनने से ,            
उसके बरस जाने तक !
मिटटी के गिले होने से और
उसके सुख जाने तक  ,
हम साथ चलेंगे,
मिर्गत्रिसना के सुच हो जाने तक !

रिश्तों के बिखरने  से ,
उसके जुड़ जाने तक ,
बात रुक जाने से ,
उसके सुरु हो जाने तक ,
हम साथ चलेंगे ,
तुम्हे किसी और का साथ मिल जाने तक...... 

Monday 12 March 2012

उलझन.. 11

हम तो यूँ ही उलझे हुए मसले  को ले बैठे थे ,
वो क्या सख्स था की उलझन और बढ़ा गया !
इकरार तो यूँ  ही बहुत  मुश्किल था ,
राश्ते बंद दिदार के भी कर गया !

यूँ तो एक  हर्फ कहते हुए ,
कांपते थे लव हमारे उनके सामने ,
वो क्या वक्त था की ,
हमने पूरा ख़त कह डाला !
डरते तो पहले  भी थे हम उनसे मगर ,
वो क्या डर था जो हमे और डरा  गया  .....




Monday 5 March 2012

फागुन ....10

होली की हुर्दंग  कहीं ,
कहीं, गुलाल बादल बन के छाया है !
देखो ना अब के ये फागुन  ,
कितने  रंग लेके  आया है !

होलिका है जलने को तैयार
 मन प्रह्लाद बन पाया है !
सब  मगन बस मस्ती धुन में,
क्या मुन्ना क्या ताया है !
देखो ना अब के ये फागुन ,
कितने रंग लेके आया है

औब मन का ना  मैल रहेगा ना ,
ही शिकवा गिला !
छल कपट सब दूरहटेंगे
किसने कपट से कुछ  पाया है !
देखो ना अब  के ये फागुन
कितने रंग लेके आया है ! 

आवो मन को रंग लें सच से 
स्नेह सुशिल और आशीष वचन से
फिर कौन आपना कौन पराया है !
देखो ना अब के ये फागुन
कितने रंग लेके आया है  

Friday 2 March 2012

सिर्फ तुम्हारे लिए.... 9

गाकर नहीं, नहीं गुनगुनाकर
चुप रह कर तुम इसे पढो
ये   कविता मैंने  लिखी  है!
सिर्फ  तुम्हारे  लिए !

अपने एहसासों को अपने आशावों
सपनो को मैंने अपने,
शब्दों में है बांधा,
सिर्फ तुम्हारे लिए !

ज्यों -ज्यों रत गहराता है !
 त्यों -त्यों अँधेरा छटा है!
 नैनों में सपने आते  हैं,
सपनो मैं तुम भी आना,
मैंने सपनो को बुना है 
सिर्फ तुम्हारे लिए !

चाँद  को  भी अब होश  नहीं  है !
 कैसा  फैलाता उजियाला  है !
हम हंसकर हल कहते सुनते हैं,
जब तट से साहिल टकराता है!
तुम मुझ को खुद में पाते  हो ,
मैं खुद को तुम मैं पाती हूँ !

हंसकर तब हम ,और साथ,
 पेड़ के साये भी झूमते गाते हैं !
गाकर नही, नही गुगुनाकर
चुप रह कर तुम इसे पढो
ये कविता मैंने लिखी है 
सिर्फ तुम्हारे लिए !

जब पंखों में प्राण नही हो 
उनमें उड़ान को तुम भरना
खवाब नहीं तुम हो हकीकत
मेरी कविता की तरह ही एक सच
जिस जगह से मैं चुप हो जाऊ 
उस जगह से तुम मुझको मुझको सुनना  
गाकर नहीं, नही गुनगुनाकर
चुप रह कर तुम इसको पढना!

गर तुम भी मुझको सुनते हो ,
मेरी धड़कन में बसते हो ,
जब दर्द परायों से मिलता हैं
मैं याद तुम्हे गर आती हूँ
तो चुप रह कर ही पढना !
ये कविता .......
सिर्फ .......

  
     



Tuesday 28 February 2012

पहल ..... 8

मैंने हर रात खुद को तैयार किया है,
सुबह तुमसे मिल कर कुछ कहने को,
पर हर बार/ हर सुबह / हर दिन,
बीत जाता है फिर कल के इंतजार  में ,
ऐसा नहीं है तुम्हारी चाहत पुरानी हो गयी है,    
पर जाने क्यों मेरे अतस में मेरी ही आवाज ,
किस जंजीर से दब गयी है!

मैंने  हर पल तुम्हे याद करना चाहा,
पर कभी याद नहीं कर पाती हूँ!
पर हर बार/ हर सुबह / हर दिन,
बीत जाता है वकत तुम्हारी ही यादों में!

मैंने  हर बार खुद को सवांर है ,
तुमसे कुछ कहलवाने के लिए,
पर तुमने नहीं देखा नज़र उठा कर भी ,
शायद नजर से मुझे बचाने के लिए!
और फिर मेरा तुमसे ही रूठकर,
तुम्हे ही याद करना ...
देखतें हैं ये सिलसिला और कुब तक चलता है ..
प्यार मेरा या तुम्हारा कब पहल करता है..   

 

Monday 27 February 2012

प्रार्थना 7

हे मेरे देव _देवता,
 मन में मेरे वासित हो !

दे मुझे विद्या का वर देना ,
भक्ति पर मेरे न शंकित  होना!   

अपनों को भी अपना न सकूं ,
ऐसी  न कलुषित भावना देना!

सूर्य मिले , शोर्या मिले ,
नाम मेरा रौशन हो !

उस पथ में दे देना रास्ता ,
जहाँ आरजू अभिनंदित हो !

सुख रहे दुःख रहे इंसानियत बाकि रहे ,
सुब गुणों से जायदा मुझमें मानवता हो  ! 

हवा .....6

दरख्त  से टूटे पात का कोई, 
अपना आसमा नहीं होता!
टकराते हैं आशियाओं  से सिर्फ हवा के झोंके,
हवाओं का कोई अपना मका नहीं होता !

लुट के सो का सवा सो नहीं होता,
बना ले चाहे कई महल लुटेरे जमी पर,
खुदा के घर में उनको कोई पनाह नहीं होता!

नजर घुमा कर तो देखिये 
मिल जायेंगे हमनजर कई!
फिर कौन कहता है ,
इशक को  कोई जुबा  नही होता......



Tuesday 21 February 2012

रेत..... 5

मुठी भर रेत सा  वो,
फिसलता जा रहा  हैं वक्त!
जितना पकड़ने  की कोशिश  करो 
बिखरता है वक्त !
फिर शाम धूमिल है,
फिर मुट्ठी बंद / खुली नहीं की,
फिसलता है वक्त!
दिन भर के उजालों सोच करभी 
रात रोशन नहीं 
फिर छलता है वक्त !
जो बीत गया /खुशी के लम्हों में,
था बड़ा शबनमी  वक्त  !
जो याद दिला दे तुम्हारी..
बरा बेरहम वक्त....
 
 

  

Saturday 18 February 2012

नयी धुप ....4

गुनगुनाती सुबह की नयी धुप है..
आंख झिलमिल अभी भी,
पती सुखी  नहीं है,
कुछ नया   रूप है !
बंदिशें हैं वक्त की ,
मगर फूल खुश है !
नहीं रोता है ,हँसता वो,
जो मिला उससे खुश है!
लघु जीवन मैं चाहे ना
सदैव उसके सुख हो 
मुरझाना ही चाहे ,
उसके जीवन का दुःख हो  ,
गुनगुनाती सुबह की नयी धुप है..
नयी घटनावो की ये 
कहीं भूमिका है 
किसी सारांश की भी 
ये शुरुआत है,
दे रहा कोई संदेश,
गुनगुनाती सुबह की नयी धुप है....
 
 
 
 
 
 
 

















 
 

शब्द....... 3

बोलते  शब्द !
सुनते शब्द !
जज्बातों के समंदर शब्द !
चिठियों में खुशियों के शब्द!
वसीयत में हैं लड़ते शब्द,
मन में लिखे सुनहरे शब्द,
बाजारों में बिकते शब्द,
बंद किताबों में परे निशब्द !
पढ़ ले तो सार्थक 
वरना शांत निरर्थक शब्द !
उलझते शब्द बिगारते शब्द
स्पर्सों के स्परसी शब्द,
होठों पर खेलते किलकते शब्द ,
दिल पर लिखे सुनहरे शब्द,
गीत कोई गुनगुनाते शब्द,
सुर के संकेत चुप से कह देते !
अख़बारों में आते जाते शब्द,
समझ ले तो सार्थक ,
वरना  शांत निर्थक शब्द  !
शब्दहिन्   शब्दों की सीमा शब्द,
श्ताभ्द  भी निह्शाबाद  भी !
शब्द ही !शब्द ही !शब्द ......

 


Friday 17 February 2012

कुछ मत कहना ...2

चाँद सा चेहरा मत कहना ,
न जुल्फों  को शाम कहो  
कर सकते हो  तो,
बस इतना कहना ,
अपनों  का जब  नाम गिनो ,
उनमें मेरा भी नाम  धरो !
आँख  हिरन  सी  मत कहना,
 न होठ को गुलाब कहो!
कर सको तो बस इतना करना ,
कुछ उमीद पर मेरे खरे उतरो !
चूड़ियों की खनक मत सुनना ,
ना पाजेब का ही कोई हिसाब करो !
जो कर सको तो बस इतना करना 
मेरे लिए अपना मन,
तुम साफ रखो .....
  


Thursday 16 February 2012

घर ....1

 
सोचा था की एक घर बनायेंगे 
सपनों से उसे सजायेंगे   की दिवार पर ,
स्नेह की पुताई  तस्वीर होगी,
प्रेम की किल पर चाहतों की तस्वीर होगी..
                 सोचा था एक घर बनायेंगे..
रस्मो से समर्पण की शुरुआत की थी,
रिश्तों की बिज के  लिए ,
आशीष की नीव दी थी !
                सोचा था एक घर ..
पहला कदम बढ़ाया तो पाया सब बेकार है !
खुशियों  की चादर में लिपटी 
 काँटों की बहार  है !
अगले कदम पे पाया हमने ,  
आशीष  के बदले मिला शाप  है !
कहते हैं कुछ लोग ,
जन्म लेना तुम्हारा पाप है !
तीसरे कदम पर अकेली नहीं थी मैं
कई साथी  थे मेरे ,
होसलों से उड़ने की ठानी हमने ,
और आकाश को चुना जमीं ,
अब चाहे कुछ देर हो जाये
पर अपना घर बनायेगे हम 
               सोचा है एक घर बनायेंगे हम..


 

Wednesday 15 February 2012

RET


Muthi bhar ret sa wo,
Phisalta ja rha wakat!
Jitna pkarne ki koshish kro
Bikharta hai wakat!
Phir sam dhumil hai
Phir muthi band/ khuli nahi ki,
Phisalta hai wakat!
Din bhar ke ujalon ko soch kar bhi
Rat roshan nahi
Phir chalta hai wakat!
Jo bit gya/khusi ke lamhon men
Tha bra sabnmi wakat!
Jo yad dila de tumhari..
Bra beraham wakat..

Tuesday 14 February 2012

KOMAL KALPNA


Main aaine main dekhti hun khud ko,
Magar kya aaina bhi dekhta hoga mujhko?
                                    Agar aaina bhi mujhe dekh pata ,
                                    to hubhu tasbir na meri bnata,
                                    khuch aur sjata apni traf se,
                                    Khuch aur swarta apni traf se,
                                    Mere hirday se hinta ko hta kar ,
                                    Unchaiyo men mujhko kai par lga kar ,
                                    Dikhata slona span aur btata wo mujhko,
                                    Ki mera bhi astitwa hai is bsundhra men ,
                                   Ese wo mere pas aa ke btata!
 Main aaine main dekhti hun khud ko,
Magar kya aaina bhi dekhta hoga mujhko ?
                                 Pal bhar ke liye hi shi par
                                Wo mujhko spno ki rani kisi ka bnata!
                               Khten hain sub such khta hai aaina,
                               Mgar wo drta khate huye such mujhse,
                               Agar mere dhukhon ko wo pahcha ,
                               Agar aaina bhi mujhe dekh pata ,
                                to hubhu tasbir na meri bnata !