Saturday 18 February 2012

नयी धुप ....4

गुनगुनाती सुबह की नयी धुप है..
आंख झिलमिल अभी भी,
पती सुखी  नहीं है,
कुछ नया   रूप है !
बंदिशें हैं वक्त की ,
मगर फूल खुश है !
नहीं रोता है ,हँसता वो,
जो मिला उससे खुश है!
लघु जीवन मैं चाहे ना
सदैव उसके सुख हो 
मुरझाना ही चाहे ,
उसके जीवन का दुःख हो  ,
गुनगुनाती सुबह की नयी धुप है..
नयी घटनावो की ये 
कहीं भूमिका है 
किसी सारांश की भी 
ये शुरुआत है,
दे रहा कोई संदेश,
गुनगुनाती सुबह की नयी धुप है....
 
 
 
 
 
 
 

















 
 

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