Monday 12 March 2012

उलझन.. 11

हम तो यूँ ही उलझे हुए मसले  को ले बैठे थे ,
वो क्या सख्स था की उलझन और बढ़ा गया !
इकरार तो यूँ  ही बहुत  मुश्किल था ,
राश्ते बंद दिदार के भी कर गया !

यूँ तो एक  हर्फ कहते हुए ,
कांपते थे लव हमारे उनके सामने ,
वो क्या वक्त था की ,
हमने पूरा ख़त कह डाला !
डरते तो पहले  भी थे हम उनसे मगर ,
वो क्या डर था जो हमे और डरा  गया  .....




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