Monday 19 March 2012

समझ ....13

हर  बार मंदिर के सीढियों तक,
चल के कदम लोट आये हैं !
जब से हम आपसे मिले  हैं ,  
क्या मांगे दुआ में ,
ये अब  तक न समझ पाए हैं !

की सोचते सोचते ,
कब  सोच बन गये हमारी ,                
रब ही बन गए हमारे, 
की जब से आप से मिले हैं ,
रब  का या आपका ,
किसका नाम लें हम पहले  ,
ये अब तक न तय कर  पाए हैं !  

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