Friday 2 March 2012

सिर्फ तुम्हारे लिए.... 9

गाकर नहीं, नहीं गुनगुनाकर
चुप रह कर तुम इसे पढो
ये   कविता मैंने  लिखी  है!
सिर्फ  तुम्हारे  लिए !

अपने एहसासों को अपने आशावों
सपनो को मैंने अपने,
शब्दों में है बांधा,
सिर्फ तुम्हारे लिए !

ज्यों -ज्यों रत गहराता है !
 त्यों -त्यों अँधेरा छटा है!
 नैनों में सपने आते  हैं,
सपनो मैं तुम भी आना,
मैंने सपनो को बुना है 
सिर्फ तुम्हारे लिए !

चाँद  को  भी अब होश  नहीं  है !
 कैसा  फैलाता उजियाला  है !
हम हंसकर हल कहते सुनते हैं,
जब तट से साहिल टकराता है!
तुम मुझ को खुद में पाते  हो ,
मैं खुद को तुम मैं पाती हूँ !

हंसकर तब हम ,और साथ,
 पेड़ के साये भी झूमते गाते हैं !
गाकर नही, नही गुगुनाकर
चुप रह कर तुम इसे पढो
ये कविता मैंने लिखी है 
सिर्फ तुम्हारे लिए !

जब पंखों में प्राण नही हो 
उनमें उड़ान को तुम भरना
खवाब नहीं तुम हो हकीकत
मेरी कविता की तरह ही एक सच
जिस जगह से मैं चुप हो जाऊ 
उस जगह से तुम मुझको मुझको सुनना  
गाकर नहीं, नही गुनगुनाकर
चुप रह कर तुम इसको पढना!

गर तुम भी मुझको सुनते हो ,
मेरी धड़कन में बसते हो ,
जब दर्द परायों से मिलता हैं
मैं याद तुम्हे गर आती हूँ
तो चुप रह कर ही पढना !
ये कविता .......
सिर्फ .......

  
     



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