Friday 13 April 2012

आदत मेरी ....17

रातों  का  ख्वाब ,
सुबह  का सूरज बन जावो !
दर्द की दवा,
खुशियों की वजह बन जावो!
 दोड़ते रहें हम,          
समंदर के किनारे नगें  पैर,
सीपियों को चुनते रहें ,
बेवजह झगड़ने की,
तुम वजह बन जावो ,
धडकनों से तेज़,
मन से भी जो हो गहरा,
वो रिश्ता बन जावो ,
सातों जनम तक ना ,
छुट सके मुझसे
तुम वो मेरी आदत बन जावो......
 
  
  


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