Monday 16 April 2012

कोमल कल्पना ...18

मैं आईने मैं देखती हूँ खुद को मगर ,
क्या आइना  भी देखता होगा मुझको...?
          अगर आइना भी मुझे देख  पाता
          तो  हुबहू तस्बीर न मेरी बनता
          कुछ और सजाता अपनी तरफ से
           कुछ  और सवार्ता अपनी तरफ से 
           मेरे हिर्दे से हीनता को हटा कर 
           ऊँचाइयों में मुझको कई पर लगा कर
           दिखता सलोना सपन
           और बताता वो मुझको
           की मेरा भी अस्तिव है बसुन्धरा में,
           इसे वो मेरे पास आके जताता!
 मैं आईने मैं देखती हूँ खुद को मगर.,
क्या आइना  भी देखता होगा मुझको ..?
            अगर आइना भी मुझे देख पाता  
             पल भर के लिये सही पर वो मुझको
             सपनों की रानी किसी का बनता
             कहतें हैं सब सच कहता है आइना 
             मगर वो भी डरता कहते हुए सच मुझसे
             अगर मेरे दुखों को वो पहचानता
 मैं आईने मैं देखती हूँ खुद को मगर 
 क्या आइना  भी देखता होगा मुझको...?

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