भैया के कलाई क़ी राखी बनूगी,
और रसोई कि अन्नपूर्णा ,
माँ मुझको जन्म लेने दो ना ,
बन क़र दिखा दूंगी तुम्हे ,
एक दिन मैं "कल्पना " !
भैया के भी चार हाथ नही हैं ,
और ना ही चार पैर ,
जो वो कर सकते है,
मैं भी करुँगी !
जीवन के पथ पर उषा सी तेज ,
माँ मुझको जन्म लेने दो ना ,
"किरण" सी मैं भी चमकुंगी !
संस्कार को धरोहर समझूँगी,
मुझको जन्म दे कर बन जावो,
तुम मेरी ईस्वर!
"प्रतिभा "सा सम्मान पाउंगी !
जीवन के सुर को" लता" सी गाउंगी !
खुशियों का साथ बनुगी ,
और गम का बनुगी मैं सहारा !
मुझको भी तो ईस्वर ने ही रचा है ,
मुझसे ये भेद कैसा ,
माँ मुझको भी जन्म लेने दो ना ,
मैं भी बनुगी मदर टेरेसा .....
सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteअनु